पंचांग अध्याय १ ( भाग ५ ) विष्कुमभादि योग

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योग दो प्रकार के होते है – ( 1 ) विष्कुमभादि , ( 2 ) आनंदादी |
( 1 ) विष्कुमभादि योग – विष्कुमभादि योगो की संख्या २७ है | इन योगो का नियम निम्न है –
जब अश्विनी नक्षत्र के आरम्भ से सूर्य तथा चन्द्रमा – दोनों मिलकर 800 कलाये चल चुकते है | तब एक ” योग ‘ व्यतीत होता है | इस प्रकार ये दोनों जब 12 राशिया अर्थात नक्षत्र से आगे 21600 कलाये चल जाते है , तब 27 योग व्यतीत हो जाते है |
विष्कुमभादि योग के नाम
पंचांग के पांच मूल भाग होते हैं। तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण। इनमें से योग का उपयोग अधिकांशत: मुहूर्त में होता है। किसी जातक के जन्म के समय क्या योग हैं, उससे जातक के जीवन के बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं मिलती, लेकिन मुहूर्त के रूप में विपरीत योगों का त्याग करना चाहिए।
इनमें भी पूरे योगकाल का त्याग न करके, केवल कुछ भाग का ही त्याग करने के निर्देश विभिन्न शास्त्रों में दिए गए हैं। सूर्य और चंद्रमा की पारस्परिक कोण से बने 27 योगों में का नामकरण श्रीपति ने इस प्रकार किया है।
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पंचांग ( अध्याय १ ) भाग ५ विष्कुमभादि योग
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पंचांग ( अध्याय १ ) भाग ५ विष्कुमभादि योग
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